Daughters Inheritance Rights – इन दिनों सोशल मीडिया और न्यूज़ प्लेटफॉर्म्स पर एक खबर तेजी से वायरल हो रही है – कि सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों को पिता की संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार कर दिया है। लोग ये सोच रहे हैं कि शायद अब बेटियों का हक खत्म कर दिया गया है। लेकिन अगर आप भी यही सोच रहे हैं, तो रुक जाइए! सच्चाई इससे काफी अलग है। सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों के हक को नहीं छीना है, बल्कि कुछ पुरानी गलतफहमियों को साफ किया है – खासकर उस स्थिति को लेकर जब पिता की संपत्ति उनकी अपनी कमाई से बनी हो।
क्या कहा है सुप्रीम कोर्ट ने – समझिए आसान भाषा में
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक मामले में कहा है कि अगर कोई पिता अपनी मेहनत की कमाई से कोई संपत्ति बनाता है और फिर उस पर वसीयत तैयार कर देता है – यानी ये लिख देता है कि वह अपनी संपत्ति किसे देना चाहता है – तो फिर उस वसीयत का पालन करना जरूरी होगा। इसका मतलब यह हुआ कि अगर पिता ने अपनी स्व-अर्जित संपत्ति (यानि जो उन्होंने खुद कमाई है) किसी एक खास व्यक्ति को देना तय किया है, चाहे वह बेटा हो, बेटी हो या कोई और, तो बाकी वारिस उस संपत्ति पर कानूनी दावा नहीं कर सकते।
लेकिन अगर बात पैतृक संपत्ति की हो – यानी जो कई पीढ़ियों से परिवार में चली आ रही हो – तो उस पर बेटी और बेटा दोनों को बराबरी का अधिकार है। यह हक बेटी को जन्म से ही मिल जाता है, चाहे वह शादीशुदा हो या नहीं।
स्व-अर्जित और पैतृक संपत्ति में फर्क जानना जरूरी है
स्व-अर्जित संपत्ति वो होती है जो आपके पिता ने नौकरी, बिज़नेस या किसी और ज़रिए से खुद की मेहनत से कमाई होती है। इस पर वो पूरी तरह मालिक होते हैं और इसे किसी को भी देने का हक रखते हैं – वसीयत या गिफ्ट के जरिए। वहीं पैतृक संपत्ति वो होती है जो पिता को उनके पूर्वजों से मिली होती है – जैसे दादा या परदादा से चली आ रही ज़मीन या प्रॉपर्टी। ऐसी संपत्ति में बेटी और बेटा दोनों को बराबर का हिस्सा मिलता है जब तक कि बंटवारा नहीं हुआ हो।
क्या सिर्फ बेटी या बेटा होना ही संपत्ति का मालिक बना देता है?
नहीं! सुप्रीम कोर्ट ने ये भी स्पष्ट कर दिया है कि सिर्फ बेटा या बेटी होना आपको अपने आप संपत्ति का वारिस नहीं बना देता। अगर पिता ने वसीयत लिख दी है, तो उस वसीयत का पालन जरूरी होगा। लेकिन अगर वसीयत नहीं है, तो फिर Hindu Succession Act, 2005 के तहत सभी कानूनी उत्तराधिकारी – यानी बेटा, बेटी, पत्नी – संपत्ति में बराबर के हकदार होंगे।
2005 और 2020 के फैसलों की झलक
साल 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में जो संशोधन किया गया, उसने बेटियों को भी बेटों के बराबर अधिकार दिया। उसके बाद 2020 में विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा केस में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को और मजबूत किया कि बेटियों को पैतृक संपत्ति में जन्म से अधिकार है, भले ही पिता की मृत्यु उससे पहले हो गई हो या बाद में। 2025 के इस नए फैसले में कोर्ट ने ये कहा है कि अगर संपत्ति स्व-अर्जित है और पिता ने वसीयत कर दी है, तो वसीयत का सम्मान किया जाएगा।
कब बेटियों को नहीं मिलेगा संपत्ति में हिस्सा?
अगर संपत्ति स्व-अर्जित है और पिता ने स्पष्ट वसीयत तैयार कर दी है, तो बेटी उसमें हिस्सा नहीं मांग सकती। अगर पिता ने संपत्ति किसी को गिफ्ट कर दी है या बेच दी है, तो भी बेटी को उसमें कोई अधिकार नहीं होगा। इसके अलावा, अगर पहले ही संपत्ति का बंटवारा हो चुका है, तो भी बेटी को अलग से हिस्सा नहीं मिलेगा।
बेटियों को क्या करना चाहिए?
सबसे पहले, अपने अधिकारों को समझना बहुत जरूरी है। सोशल मीडिया की अफवाहों पर यकीन न करें। अगर संपत्ति को लेकर कोई सवाल है, तो उसके दस्तावेज़ देखें – क्या वसीयत बनी है? अगर वसीयत नहीं है और संपत्ति पैतृक है, तो बेटी कानूनी रूप से अपने हिस्से की मांग कर सकती है। अगर मामला विवादित है, तो किसी अच्छे वकील से लीगल सलाह जरूर लें और जरूरत हो तो कोर्ट का दरवाजा खटखटाएं।
बेटियों के अधिकार सुरक्षित हैं
इस फैसले से यह बिल्कुल साफ हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों के अधिकारों को खत्म नहीं किया है। बस ये बताया गया है कि अगर संपत्ति पिता की खुद की कमाई से है और उन्होंने वसीयत कर दी है, तो उसे मानना होगा। लेकिन अगर कोई वसीयत नहीं है, तो बेटी पूरी तरह संपत्ति में हिस्सेदार है – और अगर संपत्ति पैतृक है, तो बेटे और बेटी दोनों को बराबर का हक मिलेगा।
Disclaimer
यह लेख सुप्रीम कोर्ट के 2025 के फैसले और मौजूदा हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के आधार पर लिखा गया है। इसमें दी गई जानकारी केवल सामान्य समझ के लिए है। किसी विशेष कानूनी सलाह या संपत्ति विवाद के लिए कृपया किसी योग्य वकील से व्यक्तिगत परामर्श जरूर लें।