Son Property Rights : अगर आप भी सोचते हैं कि “बेटा हूं, तो बाप की सारी संपत्ति मेरी ही होगी”, तो अब ज़रा रुक जाइए। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जो प्रॉपर्टी से जुड़े लाखों विवादों का हल साबित हो सकता है।
कोर्ट ने साफ कहा है कि अगर कोई संपत्ति पिता ने अपनी मेहनत से अर्जित की है, यानी वह स्वअर्जित संपत्ति है, तो बेटे का उस पर कोई कानूनी अधिकार नहीं है।
पिता की मर्जी ही अंतिम
कोर्ट ने कहा कि बेटा चाहे कुंवारा हो या शादीशुदा, वह ना तो जबरदस्ती पिता की संपत्ति में रह सकता है और ना ही उसका हिस्सा मांग सकता है – जब तक वह संपत्ति स्वअर्जित है।
इसका मतलब यह हुआ कि पिता अपनी संपत्ति जिसे चाहे उसे दे सकते हैं – बेटी को, बेटे को, या किसी ट्रस्ट को, और इसके लिए उन्हें किसी की इजाजत लेने की जरूरत नहीं।
मिताक्षरा कानून क्या कहता है?
फैसले में कोर्ट ने मिताक्षरा स्कूल ऑफ लॉ का हवाला दिया, जो हिंदू उत्तराधिकार कानून का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके अनुसार:
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अगर संपत्ति पैतृक है (पुरखों से चली आ रही), तो उसमें बेटे, बेटी, पोते – सभी का बराबर हक है।
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लेकिन अगर संपत्ति स्वअर्जित है, तो उस पर केवल पिता का अधिकार होता है। वह चाहें तो वसीयत बना सकते हैं, और किसी को भी लाभार्थी बना सकते हैं।
कोर्ट में केस करने का भी हक नहीं
अगर कोई बेटा यह सोचता है कि वह कोर्ट में जाकर अपना हिस्सा मांग सकता है, तो कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि ऐसा नहीं हो सकता। जब तक संपत्ति पिता की स्वअर्जित है, कोई वारिस कोर्ट में दावा नहीं कर सकता। यहां तक कि बेटे को जबरदस्ती घर में रहने का अधिकार भी नहीं होगा, अगर पिता चाहें कि वह न रहे।
बेटियों और पोतों के लिए भी यही नियम
यह नियम सिर्फ बेटों के लिए नहीं, बल्कि बेटियों और पोतों पर भी लागू होता है। यानी अगर संपत्ति स्वअर्जित है, तो कोई भी उसका हकदार नहीं बनता – जब तक कि पिता खुद उसे न सौंपें या वसीयत न बनाएं।
क्या करना चाहिए अगर विवाद हो?
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पहले पता करें कि संपत्ति पैतृक है या स्वअर्जित
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अगर स्वअर्जित है, तो खरीदी के कागज़ात, रजिस्ट्री आदि की जांच करें
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वसीयत है या नहीं, यह जानना जरूरी है
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किसी भी कदम से पहले अच्छे वकील से सलाह लें
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बातचीत से हल निकालना हमेशा बेहतर विकल्प है
रिश्तों को टूटने न दें
ध्यान रखें कि संपत्ति आती-जाती रहती है, लेकिन रिश्ते हमेशा साथ होते हैं। प्रॉपर्टी को लेकर होने वाले झगड़े अक्सर पूरे परिवार को तोड़ देते हैं। बेहतर होगा कि समय रहते पिता से वसीयत बनवाएं और सब कुछ साफ-साफ तय करवा लें, ताकि भविष्य में किसी को कोर्ट-कचहरी के चक्कर न काटने पड़ें।