Supreme Court Decision – सरकारी नौकरी करने वालों के लिए एक बहुत बड़ी राहत भरी खबर सामने आई है। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जो रिटायर हो चुके कर्मचारियों के लिए किसी तोहफे से कम नहीं है। इस फैसले के अनुसार, अगर कोई सरकारी कर्मचारी रिटायर हो चुका है, तो उसके खिलाफ विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती। यानी अब रिटायरमेंट के बाद किसी भी तरह की विभागीय जांच या कार्रवाई का डर नहीं रहेगा।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा है कि किसी भी रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी के खिलाफ न तो कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice) जारी किया जा सकता है और न ही उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू की जा सकती है। अगर कर्मचारी सेवा में नहीं है और उसकी सेवानिवृत्ति हो चुकी है, तो उस पर कार्रवाई का कोई आधार नहीं बनता।
ये फैसला उन सभी कर्मचारियों के लिए बेहद अहम है, जो सेवा के दौरान बेदाग काम करते हैं लेकिन रिटायरमेंट के बाद किसी पुराने मामले को लेकर परेशान किए जाते हैं।
कहां से शुरू हुआ मामला?
इस पूरे मामले की शुरुआत हुई भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के एक रिटायर्ड कर्मचारी नवीन कुमार से, जिन पर ये आरोप लगाया गया कि उन्होंने अपने रिश्तेदारों को लोन देने में बैंक के नियमों का उल्लंघन किया है। कर्मचारी ने 30 साल की सेवा पूरी करने के बाद रिटायरमेंट ले लिया था और उन्हें थोड़े समय के लिए सेवा विस्तार भी मिला था। लेकिन जब मामला उठा, तब वो सेवा से पूरी तरह अलग हो चुके थे।
फिर भी एसबीआई ने उनके खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया और करीब एक साल बाद अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू कर दी। मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जहां से एसबीआई को झटका लगा और फैसला कर्मचारी के पक्ष में गया। जब बैंक ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, तो वहां से भी वही फैसला बरकरार रहा।
सुप्रीम कोर्ट का तगड़ा जवाब
सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने बेहद साफ शब्दों में कहा कि किसी भी सरकारी कर्मचारी पर तब तक विभागीय कार्रवाई नहीं की जा सकती जब तक सक्षम प्राधिकारी द्वारा विधिवत आरोपपत्र (Charge Sheet) जारी न किया जाए। और अगर कर्मचारी रिटायर हो चुका है, तो उसकी सेवा समाप्त मानी जाएगी और ऐसे में कोई कार्रवाई नहीं बनती।
कोर्ट ने यह भी कहा कि केवल कारण बताओ नोटिस जारी करके आप किसी कर्मचारी को परेशान नहीं कर सकते। कानूनी प्रक्रिया का पालन जरूरी है और अधिकारों की रक्षा भी उतनी ही जरूरी है।
एसबीआई की दलीलें और कोर्ट का जवाब
एसबीआई की तरफ से वकील ने यह तर्क दिया कि कर्मचारी ने खुद स्वीकार किया था कि वह 30 अक्टूबर 2012 तक सेवा में रहेगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सेवा विस्तार की कोई वैध जानकारी या दस्तावेज सामने नहीं आया, इसलिए माना जाएगा कि कर्मचारी पहले ही रिटायर हो चुका था।
कर्मचारियों को मिला बड़ा फायदा
इस फैसले के बाद सभी रिटायर्ड सरकारी कर्मचारियों को राहत की सांस मिली है। अब उन्हें यह डर नहीं रहेगा कि रिटायरमेंट के बाद भी किसी पुराने मामले को लेकर उन्हें परेशान किया जा सकता है। कोर्ट ने यहां तक कहा कि एसबीआई को छह हफ्तों के भीतर कर्मचारी की बकाया राशि भी चुकानी होगी।
यह फैसला सरकारी सिस्टम में एक मिसाल कायम करेगा और यह भी तय करेगा कि रिटायर हो चुके कर्मचारियों के साथ सम्मान और कानून का पालन करते हुए ही व्यवहार किया जाए।
कर्मचारियों को क्या करना चाहिए?
अगर आप एक सरकारी कर्मचारी हैं या हाल ही में रिटायर हुए हैं, तो इस फैसले को ध्यान में रखते हुए कुछ बातें समझ लेना जरूरी है:
- रिटायरमेंट के बाद विभागीय कार्रवाई की कोई वैधता नहीं है।
- किसी भी तरह की नोटिस या चार्जशीट सेवा में रहते हुए ही जारी होनी चाहिए।
- अगर आपके साथ ऐसा कुछ होता है, तो आप कोर्ट का रुख कर सकते हैं और सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का हवाला दे सकते हैं।
- किसी भी कार्रवाई से पहले सक्षम प्राधिकारी द्वारा अनुमोदन जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न सिर्फ नवीन कुमार जैसे कर्मचारी के लिए बल्कि पूरे देश के लाखों सरकारी कर्मचारियों के लिए राहत की खबर है। यह निर्णय साबित करता है कि न्यायपालिका कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। अब रिटायरमेंट का मतलब सिर्फ सेवा से विदाई होगा, किसी कानूनी परेशानी की शुरुआत नहीं।